गढ़वाली कविता
गौं किं पीड़ा
सुणा जांदारा मनख्यूँ तुम पीड़ा हमारि,
बिराणा गौ मा बिराणा मनखि रयान,
वु बि जाण लै ह्वोयांन बाटौं मा तैयार,
घौरु मां वु बौडा - बौडी तुम हि रयान,
कन कै तुम कटला सुख-दुख का दिन तुम,
कुई नि रयान तुमारा अपणा अब घौरौ मा,
आला जब औडळा ह्वोली रुमझुम बरखा,
तब तुम तै धै लगौण वाला क्वी नि राला,
अब ह्योण दुख मा अंधेरू तुम तैं,
आस उम्मीद तुम अब अफु से इन करा,
न दुख का औडळा कबि नि आया ई जोन मा, अब नि छै क्वी हमारा अपणा रयान ,
न अब क्वी बैरि अपणा गौं मा रयान ,
जन रैदु बांज को डालु सदनि हर्यूं भर्यूं,
ऐ होलु पतझड़ कबि युका जीवन मा,
पर वु कबि नि टूट्यान अफु मा ,
तन ह्वे जावा तुम बांज जना ,
न रै क्वै अपणु,न रै क्वै बैरि तुमारू,
जौ संणी तुम खुद्येला गौं मा,
जौ संणी तुम रखला बैर गौं मा,
कब क्वै नि रयान गौं मा तुमारा,
सबी बसैगी वूं बडा सैरुं,बाजारुं मा,
बित्यूं जु तुमारु बचपन गौं मा,
हैंसि खेलि जु काटि दिन तुमुन गौं मा,
वु सबि दिनूं तैं भूली गैन तुम अब ,
बिराणा हुंयान गौं गौठ्यार अब,
ज्यूंदा छन तुमारा औणैं आस मा,
सुणा जांदारा मनख्यूँ तुम पीड़ा हमारि।।
©®
राहुल भट्ट
नगल,शिव गुफा,
उत्तरकाशी उत्तराखंड
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गौं किं पीड़ा

सुणा जांदारा मनख्यूँ तुम पीड़ा हमारि,
बिराणा गौ मा बिराणा मनखि रयान,
वु बि जाण लै ह्वोयांन बाटौं मा तैयार,
घौरु मां वु बौडा - बौडी तुम हि रयान,
कन कै तुम कटला सुख-दुख का दिन तुम,
कुई नि रयान तुमारा अपणा अब घौरौ मा,
आला जब औडळा ह्वोली रुमझुम बरखा,
तब तुम तै धै लगौण वाला क्वी नि राला,
अब ह्योण दुख मा अंधेरू तुम तैं,
आस उम्मीद तुम अब अफु से इन करा,
न दुख का औडळा कबि नि आया ई जोन मा, अब नि छै क्वी हमारा अपणा रयान ,
न अब क्वी बैरि अपणा गौं मा रयान ,
जन रैदु बांज को डालु सदनि हर्यूं भर्यूं,
ऐ होलु पतझड़ कबि युका जीवन मा,
पर वु कबि नि टूट्यान अफु मा ,
तन ह्वे जावा तुम बांज जना ,
न रै क्वै अपणु,न रै क्वै बैरि तुमारू,
जौ संणी तुम खुद्येला गौं मा,
जौ संणी तुम रखला बैर गौं मा,
कब क्वै नि रयान गौं मा तुमारा,
सबी बसैगी वूं बडा सैरुं,बाजारुं मा,
बित्यूं जु तुमारु बचपन गौं मा,
हैंसि खेलि जु काटि दिन तुमुन गौं मा,
वु सबि दिनूं तैं भूली गैन तुम अब ,
बिराणा हुंयान गौं गौठ्यार अब,
ज्यूंदा छन तुमारा औणैं आस मा,
सुणा जांदारा मनख्यूँ तुम पीड़ा हमारि।।
©®

नगल,शिव गुफा,
उत्तरकाशी उत्तराखंड
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