उत्तराखंड की लगूली is
feeling happy at उत्तराखंड की लगूली.
Published by Balkrishna Dhyani
Pauri, India

जो भी हो तुम
जहां भी हो तुम
आखिर पहाड़ का लाड़ हो तुम ।
तुम होते तो कैसा होता
पहले जैसा गांव होता
चाची दादी मां बढ़ी
लहलहाते खेत सगवाड़ा होता ।
तुम जो आते जाते रहते
द्वार तिवार सजाते रहते,
बुजुर्गो का खून पसीना
स्वाभिमान बचाते रहते ।
खोलो खोलो रौनक होती
बच्चो की किलकारी होती
ग्राम देव का आश्रीवाद
बड़े बूढों के तजुर्बे होते ।
सड़क सड़क न बगुले बसते
घुघुति कम न ब्वायलर बढ़ते
संस्कृति सभ्यता न दूषित करते
तुम्हारे दम पर हम भी कुछ करते ।
हवा और पानी ले गयें
सपनों पर हाथ फेर गयें,
तुमको भौतिकता में उलझाकर,
खाली पूरा पहाड़ कर गयें ।
!_राकेश_!
©® राकेश उनियाल
गांव सकलाना
टेहरी गढ़वाल उत्तराखंड
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