खुच्यल्या पराण Gharwali Poetry Wrote By Gharwali Poet Sunil Bhatt


उत्तराखंड की लगूली

Pauri, India 
#गढवालिम_कविता

खुच्यल्या पराण

मेरू पराण ग्वाया लगाणु, तंगतंग्याणु सीखीगे।
छ्वटी छ्वटी छ्वयुँ मा मुख उर्याणु, बिन्डी रूसाणु सीखीगे।
मेरू पराण ग्वाया लगाणु, तंगतंग्याणु सीखीगे।

मन की बात कुटर्यौं बांधी, हिया लुकाणु सीखीगे।
मुखड़ी देखी तुमरी झऽल, दिल बुथ्याणु सीखीगे ।
मेरू पराण ग्वाया लगाणु तंगतंग्याणु सीखीगे।।

गाण्यौं का सार्यौं फिरड़ा फिरड़ी, स्वीणा गठ्याणु सीखीगे।
माया की पुंगड़्यौं लुकी छुपी, वाढु रड़ाणु सीखीगे ।
मेरू पराण ग्वाया लगाणु तंगतंग्याणु सीखीगे ।।

सिलक्याँ छ्वयौं भलु कै तपैई, झैल लगाणु सीखीगे।
बणी बथौं लतम्वड़ी डाल्यौं, आँखा दिखाणु सीखीगे ।
मेरू पराण ग्वाया लगाणु तंगतंग्याणु सीखीगे।।

खुच्यल्या ह्वैगे अज्यौं बटै, बिना बाती ऐड़ाणु सीखीगे।
कुन्येती ह्वैगे कख लग्याँ तुम, टपराणु सीखीगे ।
मेरू पराण ग्वाया लगाणु तंगतंग्याणु सीखीगे ।।
छ्वटी छ्वटी छ्वयौं मा मुख उर्याणु, बिन्डी रूसाणु सीखीगे ।।
मेरू पराण ग्वाया लगाणु तंगतंग्याणु सीखीगे।।

स्वरचित/*सुनील भट्ट*
देहरादून उत्तराखंड
भारत

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