हिंस्वळि कैगे जिंदगि ***Grhwali Poetry/Garhwali Gajal wrote by Payash Pokhara

 


हिंस्वळि कैगे जिंदगि
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मिठ्ठि-मिठ्ठि छुयूं मा,
हिंस्वळि कैगे जिंदगि ।

मयल्दु माया लगैकि,
तिस्यळि कैगे जिंदगि ।

तिर्वळि हिटणु रौं मि,
ढिस्वळि कैगे जिंदगि ।

ब्यखुनि फ़जल अबेर,
सिनक्वळि कैगे जिंदगि ।

भटुळि खज्याणि रंदि,
किस्वळि कैगे जिंदगि ।

सौ समाळि सजबिज,
अंज्वळि कैगे जिंदगि ।

पुरणमस्या जून सि,
उज्यळि कैगे जिंदगि ।

जिकुड़ि झंझोड़ि की,
निख्वळि कैगे जिंदगि ।

मंगत्या बणैकि मीथैं,
फिक्वळि कैगे जिंदगि ।

बांज बुरांस का दगड़,
लिक्वळि कैगे जिंदगि ।

'पयाश' का पिरेम मा,
कळकळि कैगे जिंदगि ।

©® पयाश पोखड़ा

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