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नवरात्रि के पावन पुनीत अवसर पर :-

घर-घर तेरी जोत जली ग्येनि,
दूर-दूर बटि मां भक्त तेरा ,
भयहारिणी, भव तारिणी छै तु,
दुष्ट संघारिणी, पापमोचनी छै तू ,
आस लेकि शरण जो औंदु ,
रोग - शोक सब हर लेंदी छै तु ।।
शेर सवार हृवैकि जब तू औंदि ,
दुख भक्तों को पल में मिटौंदि ,
काल की क्रूर छाया थैं हे मां ,
पल भर मा तु मार भगौंदी ।
लाल चुन्नी मां त्वैथैं चढ़ांदा,
चूड़ी ,बिंदी, न त्वै सजांदा,
जौ कि हैरयाली घर-घर जमौंदा,
भक्त जय जय कर मनौंदा ।
ढोल दमों लेकि थान पै औंदा ,
नौ दिन ,नौ रात मंडाण लगौंदा ,
जसीली माता जौं जस दे जांदी ,
आंखियू कु आंसू फूंजी जांदी ।
मैं भी तेरो भक्त छौं अजाण ,
महिमा तेरी हे मां बड़ी महान,
दूर कर दे दुख,हर अज्ञान ,
मुंड मा हाथ धरी कर कल्याण।।

स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना द्वारा
सरिता डबराल इस्टवाल
प्रताप विहार, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
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