रास्ते बदलें हैं रिश्तेदारी नहीं बदली।
हवायें उस जगह को छू के आती हैं,
मिट्टी की ख़ुशबू भी वही की वही है,
चिड़ियों की चहचहाहट भी है वैसे ही,
जगह बदली है , ज़मींदारी नहीं बदली।
चाँद सूरज भी उसी तरह उगते डूबते हैं,
सर्दी गर्मी बरसात का मज़ा भी वही है,
भूख और प्यास अब भी वैसे ही लगती है,
चंद आदतें बदली हैं, ख़ुद्दारी नहीं बदली।
होंगे और जो थक जाते हैं चलते चलते,
बादलों को भला कहाँ थकान होती है,
हवाओं का रुख़ कहाँ किसी से थमा है,
उड़ा ले जाती है हवा, सवारी नहीं बदली।
देश से बाहर हूँ पर परदेशी नहीं हुआ हूँ,
जगह बदली है विरासत तो नहीं बदली,
हवा पानी बदलने से विचार नहीं बदलते,
रास्ते बदलें हैं रिश्तेदारी नहीं बदली।
©® हरि लखेड़ा
#हरि_लखेड़ा
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हवायें उस जगह को छू के आती हैं,
मिट्टी की ख़ुशबू भी वही की वही है,
चिड़ियों की चहचहाहट भी है वैसे ही,
जगह बदली है , ज़मींदारी नहीं बदली।
चाँद सूरज भी उसी तरह उगते डूबते हैं,
सर्दी गर्मी बरसात का मज़ा भी वही है,
भूख और प्यास अब भी वैसे ही लगती है,
चंद आदतें बदली हैं, ख़ुद्दारी नहीं बदली।
होंगे और जो थक जाते हैं चलते चलते,
बादलों को भला कहाँ थकान होती है,
हवाओं का रुख़ कहाँ किसी से थमा है,
उड़ा ले जाती है हवा, सवारी नहीं बदली।
देश से बाहर हूँ पर परदेशी नहीं हुआ हूँ,
जगह बदली है विरासत तो नहीं बदली,
हवा पानी बदलने से विचार नहीं बदलते,
रास्ते बदलें हैं रिश्तेदारी नहीं बदली।
©® हरि लखेड़ा
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