इंसान जब दूल्हा होता है,Hindi Poetry By Radhe Ravindra Rawat

 


इंसान जब दूल्हा होता है,,

बड़ा अजीब ये दिन होता है एक इंसान से कुछ अलग जब दूल्हा होता है,,
माँ बापों भाई बहिनो व आपनो का भी फर्ज निभाना जहाँ कम न होता है,,
छपवाकर निमंत्रण उन्हें बाँटना जहाँ समाज को अवगत कर भुलाना होता है,,
अपने रश्मों व रिवजों के अनुयायियों ढोल वादकों व कुल पोरेहित भूलना भी जहाँ होता है,,
घर गाँव मौहल्ले में जहाँ बड़ा माहौल खुशियों का होता है,,
कोई अग्रिम बधाई कोई बधाई हो,ये माहौल शादी के दो चार ही दिन तक होता है,,
रिश्ते दारों का आवगमन और साथ भी जहाँ दो चार दिन का होता है,,
कभी अडसे बनाना कभी माहौल मेहदी का बड़ा खुशनुमा जहाँ होता है,,
बन दूल्हा बराती संग जाना पहन वरमाला दुल्हन को घर लाना होता है,,
कुछ वरमाला का वक़्त कुछ सासु लोगों से भेंट और मंडप के फेरे का वक़्त भी अजीब सा होता है,,
कुछ हँसी मजाक कुछ मौज मस्ती खुशियों के माहौल का खानपान जहाँ होता है,,
वो अपनों का गाना वो अपनों का नाचना व आंना ये यादों का सिलसिला होता है,,
निभाना फर्ज करना तैयारी जहाँ सब तुम्ही को होता है,,
बस साथ खड़े होकर सबको सेल्फियों में ये दिन भुनाना होता है,,
बड़ा अजीब ये दिन होता है एक इंसान से कुछ अलग जब दूल्हा होता है,,

🙏जय श्री राधे, जय वासुदेव🙏
आपका अनुज
✍️राधे रविन्द्र रावत(RRR)
रुद्रप्रयाग जखोली का सुदूरवर्ती
पट्टी बाँगर कु मुन्याँघर रैबासी🙏

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