बालकृष्ण डी. ध्यानी ने प्रकाशित किया
· 1 दिन · Pauri, उत्तराखण्ड, भारत ·

उम्दा रचना
#हिन्दी_कविता
सुना है एक उम्र गुजर जाती
उसकी याद आती उम्र भर
सब सबके नसीब मैं कब होता?
पतंग के मांझे सी
उलझ रखी जिंदगी
पत्तों को उतनी मुहब्बत कब मिली
जितनी फूलों को
पत्ते जब जुदा हुए दरख्तों से
हरा भरा मौसम ही ले गये
जब जब देखती खुद को
चांद सितारों से खेलते
अवनी पर मेरा कुछ
गुम हो जाता
कैसे हे ईश मेरे.....
जिसे पा नहीं सकती
उससे मुहब्बत करना ही छोड दूं
अगर पाना ही सब कुछ होता
मीरा और मोहन मैं क्या था?
गुजर जाते हैं दिन
बटोई की तरह
सुधियां रह जाती हैं
बाटों की तरह
कब कमजोरी नयनों की
बूंद बूंद नीर
मिट्टी गारे और शिलाओं में मिल
बनती मजबूती महलों की।
दमयंती
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उसकी याद आती उम्र भर
सब सबके नसीब मैं कब होता?
पतंग के मांझे सी
उलझ रखी जिंदगी
पत्तों को उतनी मुहब्बत कब मिली
जितनी फूलों को
पत्ते जब जुदा हुए दरख्तों से
हरा भरा मौसम ही ले गये
जब जब देखती खुद को
चांद सितारों से खेलते
अवनी पर मेरा कुछ
गुम हो जाता
कैसे हे ईश मेरे.....
जिसे पा नहीं सकती
उससे मुहब्बत करना ही छोड दूं
अगर पाना ही सब कुछ होता
मीरा और मोहन मैं क्या था?
गुजर जाते हैं दिन
बटोई की तरह
सुधियां रह जाती हैं
बाटों की तरह
कब कमजोरी नयनों की
बूंद बूंद नीर
मिट्टी गारे और शिलाओं में मिल
बनती मजबूती महलों की।
दमयंती
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कम देखें
— उत्तराखंड की लगूली में खुश महसूस कर रहे हैं.
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