खानग्रेस का मैनीफैस्टो Hindi Poetry wrote by Vijay Shankar Sharma

 


मेरी ग़ज़ल
ग़ज़ल :
खानग्रेस का मैनीफैस्टो
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मैं मज़े में हूं बेहतर हूं, ज़माना है मेरे साथ,
वो कहते हैं कि हाथ बदलेगा मेरे हालात.
ये हाथ कहीं और डाल सकते हैं आप क्या?
बुरा मानिये, ऐसे ही हैं मेरे मासूम सवालात.
दुश्मनों के दम पर जो बनाया है मैनीफैस्टो,
अंदर आप मुल्क तोड़ें, वो बाहर लगाएं घात.
वो चाहते हैं मैं अपनी मौत का फ़रमान लिखूं,
बेधड़क करें वो जुर्म, और जाऊँ मैं हवालात?
ख़ुद बर्बाद करके मुल्क, हिसाब मुझसे मांगते हो.
दिल चाहता है, आवाम की पड़े आपको लात.
तरक्की जो पायी हमने ख़ाक करना चाहते हो,
मुल्क हो तबाह-ओ-बर्बाद, ऐसे हैं ख़यालात.
हिन्दुओं से नफ़रत और वोट भी उन्हीं का.
वक़्त धर्म की सुबह हो, अधर्म की हो रात.
दो ही कौम रहती हैं मेरे मुल्क भारत में,
एक है वतन परस्त, एक है ग़द्दार जात.
देश गरीब-ओ-लाचार और कंगाल हो जाए,
ऐसे हैं इनके मंसूबे, ऐसे हैं कम-ज़र्फ़ ज़ज्बात.
कुछ पर मेहरबानी, अकसरिय्यत को परेशानी,
वादे तेरे वादे जानी, सारे वादे हैं मुहालात.
कमल को जाएगा मेरा वोट हमेशा की तरह.
तेरा हाथ नहीं फांसी का फंदा है, पक्की बात.
ना अपना धर्म, पैसा, आबरू तेरे हवाले करूँ,
ना तेरे कुत्तों के बिस्कुट खाऊँ, ना खाऊँ मात.
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आवाम = देशवासी
फ़रमान = आदेश
मंसूबे = plans
कम-ज़र्फ़ = घटिया, नीच
जायज़ = सही, just
अकसरिय्यत = majority
मुहालात (plural l) = very difficult, impossible
मात = हार
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©विजय शंकर शर्मा
(Dhoundiyal) 'शिकन'
डिबोली,पौड़ी गढ़वाल

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