बचपन बचपन सा ना हो Hindi Poetry/Garhwali Poetry wrote by Kailash Upreti Komal

 


#हिंदी_कविता

बचपन बचपन सा ना हो

बचपन तब भूला लगता है जब बचपन बचपन सा न हो।
जब नहीं चले हो घुटनों पर,ना लिया सहारा दीवार का हो।।

आज सुलभ है भौतिकता का ,जहां वॉकर झूले से दिन होता हो।
बचपन तब भूला लगाता है जब बचपन बचपन सा न हो ।

जहां ना मिला हो आंचल मां का,आया ने अंक दिखाया हो ।
बचपन तब भूला लगता है जब बचपन बचपन सा ना हो ।।

जब ना सुनी लोरी दादा दादी की, दूध ना पिया अपनी मा का हो।
बचपन तब भूला लगाता है जब बचपन बचपन सा ना हो।।

ना देखी घर आंगन की मिट्टी, कभी घुटनों पर उसमें न चले हो।
बचपन तब भूला लगता है जब बचपन बचपन सा ना हो ।।

ना सेक सकी हो आग चूल्हे की, ना मालिश दादी ने की हो।
बचपन तब भूला लगता है जब बचपन बचपन सा ना हो ।।

नहलाया ना हो दादी ने पैरों पर अपने, ना दादा के कंधों की सैर की हो ।
बचपन तब भूला लगता है जब बचपन बचपन सा ना हो ।।

कैलाश उप्रेती कोमल
ग्राम - स्यूंटा जिला - चमोली पो. ओ -खैनोली
विकासखंड - नारायणबगड़
जिला - चमोली
पिन - 246444
दूरभाष -9917321848
उत्तराखंड
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