नव संवत्सरक बधाई कुमांऊनी रचना Kumaoni composition wrote by Utterakhandi Poet Bhuvan Bisht


उत्तराखंड की लगूली
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 ·  #कुमांऊनी_रचना

नव संवत्सरक बधाई (कुमांऊनी रचना)
नव संवत्सरक सबूंकैं बधाई।
खुशियाँ सबूं आंगन में रौ छाई।
खुशियोंक भरिं जो भकार,
स्वैणा सबूंक हैंजो साकार।
खेतीबाड़ी हैजो हरिया सार,
आब दूध दै खूब हैजो बहार।।
पहाड़क ठंडी हाव मिठो पाणिक,
सबूंकै लागि जौ नराई।
नव संवत्सरक सबूंकैं बधाई।
गौं -घर शहर देश विदेश,
मिटजो सब जाग बै राग द्वेष।
मानवता खूब तू दैण हैजे।
सबूंक मन में पैलिं ऐजे।।
नयी सोच नयी उमंग ऐजो।
प्रेम भाव सबूंक संग हैजो।।
नयी संवत्सरक स्वागत छूँं,
पुराण वर्षक हैगे विदाई।
नव संवत्सरक सबूंकैं बधाई।
सबूं आब सब बिगड़ी काम हैजो,
भारतक सारे दुणीं में नाम हैजो।
कथैं निं हो आब अत्याचार ,
विकासकिं गंग ऐजो सबूं द्वार।
कर्म करणैं शक्ति हो मानवता जयकार।
खेती बाड़ी फलो फूलों उपज हो भरमार।
पलायनकिं पीड़ आब कम हैजो,
आबाद हैजो गौं घरोंक बाखई,
निं लागो कभैं कथैं आब ताई।
नव संवत्सरक सबूंकैं बधाई।
रोग दोष असज बिसज सबूंकैं दूर हैजो,
ग्यू मडू धान साग पात सब भरपूर हैजो।
गौ गौनूंमें विकासकिं भरमार हैजो।
नव संवत्सर में सबूंकैं जै जयकार हैजो ।
दैण हैजो नयीं साल नव संवत्सर,
सबूंकैं बरकत ऐजो देश विदेश गौं घर।
भौल बुलाण भौल बाट भलिं मति ऐजो।
सबूंक आशा पूरिं हैजो जो छूंँ लगाई।
नव संवत्सरक सबूंकैं बधाई।
©®- भुवन बिष्ट
मौना, (रानीखेत) ,उत्तराखंड

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