सुकून तो अपने गांव में ही है Poetry Wrote By Gharwali Poet Educationist Acharya Naveen Mamgani

 


सुकून तो अपने गांव में ही है
कमाई कितनी भी क्यों न हो,
खुशियां तो अपनो की छांव में ही है
शहर तो सिर्फ नाम का शहर है,
सुकून तो अपने गांव में ही है ।।
जहां हरे भरे खेत खलियान दिखते
कानन में हंसता है सुंदर रक्त बुराँश
चारों तरफ बंसत की बहार दिखती
रंगमत रहती है जहां घुघुती और हिलाशं
जहां प्रभात का रवि सबको आकर्षित करता
मन्द वायु बनाती है हर एक को स्वस्थ निरोग
शुद्ध खान पान व परिश्रम से जहां देह तपाते
मनमस्त रहते हैं सदा गांव में बसे वो प्यारो लोग
जहां खोली का गणेश से शीश झुकाकर
होती है हर एक ऩयी प्रभात की शुरूवात
जहां वसुधैव कुटुम्बकं की झलक दिखती है
प्रसन्नचित रहते हैं यहां सभी अपनो के साथ
जहां उत्सवों की बात बहुत ही निराली है
बिना मन भी जो अपने और खींच लाते हैं
सौभाग्यशाली हैं जिसे यहां जन्म मिला है
जिसे देखकर भोरें यहां खुशी गुनगुनाते हैं
मजबूरी है सब की गांव से दूर ऱहना
रोजगार से होती आवश्यकताएँ पूरी
परन्तु आवत जावत करते रहें हम गांव मे
क्योंकि इस मिट्टी से जुडे रहना है जरूरी
धन्यवाद
धन्यवाद🙏
रचनाकार- शिक्षाशास्त्री आचार्य नवीन ममगाँई
संस्कृत विद्यालय भुवनेश्वरी पौडी गढवाल

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