अरे आफु भल त जुग भल-Wrote By Gharwali PoetLaxman Negi Charan

 


#गढ़वळिम_कविता
अरे आफु भल त जुग भल

अपणा मनै मन, कुज्याँणि कन सोचदा,
कि मैं ही सच्चु छ, बाकी सब ठरकिबाज|
और जेथै हम सदिन्याँ अपणा सोचदिन,
सु ही आखिरकार डंसीलु सांप निकलदिन||

आफु मा त सभी देवता छिन,
तब स्या दैतों जन काम क्वा कनु|
मेरू त मन बिल्कुल गंगा जल छ,
तब आपस मा फसाद क्वा कनु||

मिन त कभि झूठ नि बोली,
ना कबरि कैकी चुगुली करि|
ऐथर-पैथर सबौ की गिचु देखा,
एक दूसरे काट सुणि सुणि मरि||

सभि अपै बिपदा मैमा सुणैदा,
सच्चु मनै बात मैमा ही बोलदा|
मिन कभी तौ की छ्वीं नि सराई,
तब सुदि-मुदि आग कैन लगाई?

मनखि भितरों जै-जै छ्वीं मिसाँणा,
कखि त मल्य मेरी काटैण लगाँणा|
आफु चलचलकार नौणीं जन डिपुलि,
मैमा भी चिफली गिचु लगाँणा||

आफु तै तुम सीधु जलेबी ना सोचा,
लुकारि छ्वी तुम भी त खूब सरौदि|
मनखि जात सब एक नार हुँदी दिदा,
तुमरू भी त दूसरों देखी जितम जलदि||

ह्वे सकि गिचु चुप धरा तुम,
अपै मनै बात मन मा हि धरा तुम|
अपणु भलु भि तभि हुँदि दिया,
जब दूसरें बारों मा भलि सोच धरा तुम||

अपणी छ्वी क्वीं झूठी नि बोलदि,
अपणै मनै काट क्वीं सहन नि करदि,
अपणा हाल चाल देख की बोला बल,
अरे आफु भल त जुग भल||

स्वरचित- लक्ष्मण नेगी चारण
ग्राम- सुतोल (सुगड़)
नन्दानगर विकासखण्ड चमोली
प्रबंधक- गुरुकुल संस्थान, गोपेश्वर (चमोली)
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