उत्तराखंड की लगूली
#हिंदी_में_कविता
कोख़ बिकेगी पैसों में
तन पर कपड़ा सर पे मड़ैया,
पेट में रोटी पूरी हो।
डिगने न देंगे ईमान स्वयं का,
चाहे कोई मजबूरी हो।
तब किसने सोचा होगा भाई,
पानी बिकेगा दूध के दाम।
कलयुग की दौलत के ख़ातिर,
बेटा न आए बाप के काम।
खून बिकेगा ब्लड बैंक में,
किडनी बिकेगी हाथों हाथ।
दिल की धड़कन गिरबी होगी,
लोग चलेंगे दिन और रात।
हर सट्टा होगा वैध जहाँ में,
तब जुआ चलेगा मैचों में।
माँ की ममता मर जाएगी तब,
जब कोख़ बिकेगी पैसों में।
कब लौटेगा वो राम राज फिर,
जो ईमान की ख्वाहिश पूरी हो।
डिगने न देंगे ईमान स्वयं का,
चाहे कोई मजबूरी हो।
भूपेन्द्र डोंगरियाल
(काव्य संग्रह-रिश्ते से उद्धृत)
ग्राम-बल्यूली,
डाकघर-मरचूला
जनपद-अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
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कोख़ बिकेगी पैसों में
तन पर कपड़ा सर पे मड़ैया,
पेट में रोटी पूरी हो।
डिगने न देंगे ईमान स्वयं का,
चाहे कोई मजबूरी हो।
तब किसने सोचा होगा भाई,
पानी बिकेगा दूध के दाम।
कलयुग की दौलत के ख़ातिर,
बेटा न आए बाप के काम।
खून बिकेगा ब्लड बैंक में,
किडनी बिकेगी हाथों हाथ।
दिल की धड़कन गिरबी होगी,
लोग चलेंगे दिन और रात।
हर सट्टा होगा वैध जहाँ में,
तब जुआ चलेगा मैचों में।
माँ की ममता मर जाएगी तब,
जब कोख़ बिकेगी पैसों में।
कब लौटेगा वो राम राज फिर,
जो ईमान की ख्वाहिश पूरी हो।
डिगने न देंगे ईमान स्वयं का,
चाहे कोई मजबूरी हो।
भूपेन्द्र डोंगरियाल
(काव्य संग्रह-रिश्ते से उद्धृत)
ग्राम-बल्यूली,
डाकघर-मरचूला
जनपद-अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
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