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"मैं मजदूरी
करती हूँ"
अपने पाँव खड़ी मैं होकर,
मार सभी कष्टों को ठोकर,
संतति पालन करती हूँ,
मैं मजदूरी
करती हूँ।
पति ने छोड़ा यह जग डेरा,
स्वाभिमान श्रृंगार
है मेरा,
मांग में भर अपनी इज्जत
को,
गर्व के संग संवरती
हूँ।
मैं मजदूरी
करती हूँ।
महल सदन के हम निर्माता,
मतलब हम हैं आश्रयदाता,
नव निर्माण
सदा ही करके,
निज अशना को हरती हूँ।
मैं मजदूरी
करती हूँ।
यद्यपि अधिक न दाम चाहिये,
बस हमको सम्मान चाहिये,
देखे दुनिया
मान से हमको,
यही अपेक्षा
करती हूँ
मैं
मजदूरी करती हूँ।
✍️ नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।
सर्वथा मौलिक,
स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना।
✍️ नरेश चन्द्र उनियाल।
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