हिन्दी । गढ़वाली ।
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"अपणा गौं मा"
भैजी हम त रै ग्यवां यखुल्या-यखुलि,
अपणा गौं मा ।
भैजी अब नि चुच्यादां चखुला-चखुलि,
अपणा गौं मा ॥
नन्ना-तिना छोरि-छ्वारा कख हर्चि गैन ।
भैजी अब त नि पैरादां हंसुलि-धगुलि,
अपणा गौं मा ॥
न घुंघर्यळि लटुली न खरड़ि मुण्डळि ।
भैजी अब नि सबरादां ट्वप्लि-झगुलि,
अपणा गौं मा ॥
स्वाळा लगड़ा तस्मैं न निरपणि की खीर ।
भैजी अब त नि फरकादां परात-थकुलि,
अपणा गौं मा ॥
ब्योल्यूं कि टौखणि अब कतै नि सुणेंदि ।
भैजी अब नि झलकांदा बुलाक-नथुलि,
अपणा गौं मा ॥
रात प्वणि दीन-द्वफिरि रीति कूड़्यूं मा ।
भैजी अब त नि जगादां छिल्ला-बतुलि,
अपणा गौं मा ॥
©® पयाश पोखड़ा
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