"अपणा गौं मा"

 

उत्तराखंड की लगूली

हिन्दी   ।  गढ़वाली ।    ।  गजल  ।  अन्य  ।  कवि  ।  कवयित्री  ।  लेख  ।

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 गढ़वाली गीत

"अपणा गौं मा"

 

भैजी हम त रै ग्यवां यखुल्या-यखुलि,

अपणा गौं मा ।

भैजी अब नि चुच्यादां चखुला-चखुलि,

अपणा गौं मा ॥

 

नन्ना-तिना छोरि-छ्वारा कख हर्चि गैन ।

भैजी अब त नि पैरादां हंसुलि-धगुलि,

अपणा गौं मा ॥

न घुंघर्यळि लटुली न खरड़ि मुण्डळि ।

भैजी अब नि सबरादां ट्वप्लि-झगुलि,

अपणा गौं मा ॥

 

स्वाळा लगड़ा तस्मैं न निरपणि की खीर ।

भैजी अब त नि फरकादां परात-थकुलि,

अपणा गौं मा ॥

 

ब्योल्यूं कि टौखणि अब कतै नि सुणेंदि ।

भैजी अब नि झलकांदा बुलाक-नथुलि,

अपणा गौं मा ॥

 

रात प्वणि दीन-द्वफिरि रीति कूड़्यूं मा ।

भैजी अब त नि जगादां छिल्ला-बतुलि,

अपणा गौं मा ॥

 

©® पयाश पोखड़ा

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