समलौण ली जांदी

उत्तराखंड की लगूली

 उत्तराखंड देवभूमि  I अनछुई सी तृप्ति  I  ढुंगा - गारा  I  आखर - उत्तराखंड शब्दकोश  I उत्तराखंड I गढ़वाली शब्दों की खोज कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I  कवितायें I कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I उत्तराखंड संस्कृतिकवितायें 
 

समलौण ली जांदी 


कभी जिकुड़ी लूछी की ली जांदी,

कभी जिकुड़ी चीरी की ली जांदी।


मज़ाक बोली जमना की हैंसी मां,

आगाश त कभी पताळ ली जांदी।


सै सैज मां छेड़ छाड़ शूल बणिगे ,

मुलमुल वीं हैंसदी माया ली जांदी।


वचन एक ही भौत कुभौड्या चुची,

सभी गुणों की डांडी सजै ली जांदी।


जिकुड़ी किलै होली अनमन भाँति,

नखरी बात किलै बटोळी ली जांदी।


कुछ तुम ह्वेला कुछ हम कमसिल ,

बस मेरु सगोर समलौंण ली जांदी।


माया कु रुळ धरी दे मेरा आखरुं मां,

 कौझ्याळ बथुं गंगछाला ली जांदी।


विनीता मैठाणी

ऋषिकेश पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ