बसंत

उत्तराखंड की लगूली

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 बसंत


मौळयार डाळी बूटियुं मां लाई बसंत,

अळसु सी लगणु ले अंगड़ाई बसंत।


उकताट किलै? कैकी खुद झुराणी?

हे देव ! कैकी खुद मां बणाई बसंत ।


न रुणझुण बरखा न डांडियुं कुएड़ी,

बिगरैली माया न झणी रुझाई बसंत।


डबखणी प्राणी कस्तूरी की खोज ,

अपणी ही सुधबुध बिसराई बसंत।


घौर हो बौंण या पुंगड्युँ का छ्वाड़,

 माया मां सब्युँ थै अळझाई बसंत ।


सिंदूरी पिंगळवात फौंक्युं फौंक्युं मां,

आँख्युं बिटि जिकुड़ी समाई बसंत।


स्कोल्या नौन्याळौं की परीक्षा नजीक,

हज्जी त्वैन भी मत्ति भरमाई बसंत।


विनीता मैठाणी

ऋषिकेश पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

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