आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 17
विद्यावती
दोनों महापुरूषों को नमन करने के बाद विद्यावती संयत स्वर में बोली, " आज के नेतागण उस महान शख्स की महानता को नहीं समझ सकते हैं जिसने प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी ल
अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कभी किसी गलत कार्य से नहीं की बल्कि हमेशा अपने वेतन में से गरीबों को भी एक भाग दिया। भारतीय राजनीति में लाल बहादुर शास्त्री का नाम अगर स्वर्णाक्षरों से लिखा है तो इसकी एक सटीक वजह भी है। बात उन दिनों की है जब आजादी की लड़ाई के दौरान श्री लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे।
जेल से उन्होंने अपनी माता जी को पत्र लिखा कि 50 रुपये मिल रहे हैं या नहीं और घर का खर्च कैसे चल रहा है? मां ने पत्र के जवाब में लिखा कि कि 50 रुपये महीने मिल जाते हैं किन्तु हम घर का खर्च 40 रुपये में ही चला लेते हैं। तब शास्त्री जी ने संस्था को पत्र लिखकर कहा कि आप हमारे घर प्रत्येक महीने 40 रुपये ही भेजें; बाकी के 10 रुपये किसी दूसरे गरीब परिवार को दे दें। जब यह बात पंडित जवाहर लाल नेहरू को पता चली तो वह शास्त्री जी से बोले कि त्याग करते हुए मैंने बहुत लोगों को देखा है लेकिन आपका त्याग तो सबसे ऊपर है। "
थोड़ा रुक कर विद्यावती ने कुर्सी में बैठने को उत्सुक नेता जी से पूछा, " क्या आपका जीवन दर्शन भी ऐसा ही है ? " नेता जी कुछ सोचते हुए बोले, " मैं उस महान नेता को नमन करते हुए सिर्फ यही कहूंगा कि मेरे जैसे लोगों को समय के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है। जनता की सोच भी अपने नेता की सोच को प्रभावित करती है। " नेता जी अब कुर्सी की तरफ लपकने के बजाय अठारहवीं परी की प्रतीक्षा करने लगे।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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