कुछ ही क्षण बीते होंगे कि यकायक नेता जी के सामने
अठारहवीं परी तारावती प्रकट हुई। उसने नेता जी से कहा, " मैं आपको वर्ष 1965 में
हुए पाकिस्तानी हमले की याद दिलाना चाहती हूं। सितंबर में एक दिन अचानक पाकिस्तान ने
भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। परंपरानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला
ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के मुखिया एवं मंत्रिमंडल के सदस्य शामिल हुए। लालबहादुर
शास्त्री जी कुछ देर से पहुंचे। विचार-विमर्श हुआ। सेना के तीन अंगों के प्रमुखों ने
जब शास्त्री जी से जवाबी कार्रवाई के बारे में पूछा तो शास्त्री जी ने तुरंत कहा,'आप
देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है?'
इतिहास गवाह है उसी दिन रात्रि के करीब 11.00 बजे हमारे
सैकड़ों हवाई जहाजों ने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर उड़ान भरी। कराची से पेशावर
तक जैसे रीढ़ की हड्डी को तोड़ा जाता है, ऐसा करके वे सही सलामत लौट आए। बाकी जो घटा
उसका गवाह इतिहास है। शास्त्री जी ने इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान
किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सब एकजुट
हो गए। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी नहीं की थी। किसी ने सच कहा है कि वीर पुत्र को
हर मां जन्म देना चाहती है। लालबहादुर शास्त्री उन्हीं वीर पुत्रों में से एक थे जिन्हें
आज भी भारत की माटी याद करती है।" फिर परी ने पूछा," आप ऐसी स्थिति आने पर
क्या करेंगे ?"
नेता जी बोले, " आज भारत - पाक, दोनों परमाणु
शक्ति संपन्न देश हैं। ऐसी स्थिति में बेहतर होगा कि दोनों देश अपनी समस्याओं का हल
बातचीत करके निकालें। " यह सुनकर " ठीक है " कहकर तारावती अंतर्ध्यान
हो गई और नेता जी सर खुजाते हुए उन्नीसवीं परी की प्रतीक्षा करने लगे।
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