आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 19
रुपरेखा
उन्नीसवीं परी रुपरेखा ने कहा, " आज का कोई भी
नेता इस बात को सुन कर हंसेगा कि बीते समय में इस देश में एक ऐसा नेता भी हुआ जिसके
लिए कोट खरीदना भी एक अय्याशी थी । खैर, एक बार शास्त्री जी को विदेश यात्रा पर जाना
था। उनके पत्नी और पुत्र ने सोचा कि उनके लिए नया कोट बनवा दिया जाए क्योंकि उनका पहले
वाला कोट काफी पुराना हो चुका था। उन लोगों ने बाजार से एक बढ़िया धारी वाला काले कोट
का कपड़ा मंगवाया और दर्जी को बुलाकर उनके सामने खड़ा कर दिया।
दर्जी ने उनका नाप लेकर अपनी डायरी में नोट कर लिया और कोट के कपड़े का लिफाफा लेकर
जाने लगा तो उन्होंने उससे धीरे से कुछ कहा। कुछ दिनों पश्चात जब दर्जी कोट का लिफाफा
लेकर आया तो उसमें से कोट निकाला गया। पर यह क्या? उसमें से तो वही पुराना कोट निकला।
उनकी पत्नी और पुत्र यह देखकर दंग रह गए पर वह दर्जी
से क्या पूछते? दर्जी के जाने के बाद उनके पुत्र ने पूछा- 'बाबूजी यह क्या माजरा है?
' वे मुस्कुराते हुए बोले,' अभी तो मेरा यह पुराना कोट पहनने लायक है। इसलिए वह कपड़ा
मैंने वापस करवाकर उन पैसों को जरूरतमंद विद्यार्थियों में बंटवा दिया है।' मैं आप
से यह जानना चाहती हूं कि आज के नेताओं में यह सादगी क्यों नहीं दिखती है ? "
नेता जी तनिक झेंपते हुए बोले, " आज जनता भी ऐसा
नहीं चाहती है कि उनके नेता वस्त्रों के मामले में दुनिया के दूसरे नेताओं से उन्नीस
रहें। फलस्वरूप, हमें समय के साथ अपनी सोच में बदलाव लाना पड़ा। " नेता जी के जवाब
को सुनकर रूपरेखा अदृश्य हो गई। अब नेता जी चहलकदमी करते हुए बीसवीं परी की प्रतीक्षा
करने लगे।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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