आधुनिक सिंहासन बत्तीसी
: भाग - 22
अनुरोधवती
नेता जी चन्द्रज्योति की बातों पर विचार कर रहे थे
कि तभी बाइसवीं परी अनुरोधवती सामने आ खड़ी हुई। नेता जी ने पहल करते हुए पूछा,
" आप भी मुझे शास्त्री जी से जुड़ा कोई प्रसंग सुनाएं ताकि मौका मिलने पर मैं भी
अपने भाषणों में उसका उपयोग करके मतदाताओं का दिल जीत सकूं। " अनुरोधवती हँसते
हुए बोली, " जानती हूँ कि बापू का इस्तेमाल कैसे किया इस देश के नेताओं ने ? खैर,
आज तो मैं आपको उनके मातृ प्रेम के बारे में बताने जा रही हूँ। स्वर्गीय लालबहादुर
शास्त्री अपनी सारी व्यस्तताओं के बावजूद अपनी मां रामदुलारी के साथ प्रतदिन कुछ समय
जरूर बिताते थे। शास्त्री जी की मां उनके कदमों की आहट से उनको पहचान लेती थीं और बड़े
प्यार से धीमी आवाज में कहती थीं,' नन्हें, तुम आ गये? ' आज की पीढी जहां अपने बुजुर्गो
की उपेक्षा करती है, वहीं शास्त्री जी अपनी सभी व्यस्तताओं के बावजूद मां की कभी अनदेखी
नहीं करते थे। तरह - तरह की राजनैतिक उलझनों से घिरे होने के बावजूद मां की आवाज सुनते
ही उनके कदम उस कमरे की तरफ मुड़ जाते थे, जहां उनकी मां की खाट बिछी रहती थी।
"
फिर चन्द्रज्योति ने नेता जी से पूछा, " मेरे
ख्याल से इंसान चाहे जितना बड़ा हो जाए, उसे अपने बड़ों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।
" नेता जी बोले, " इसमें तो दो राय होने का सवाल ही नहीं उठता। किसी कवि
ने सही कहा है,' मां जिंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है।' मैं शास्त्री जी के
इस गुण को नमन करता हूँ।" नेता जी की बात सुनकर अनुरोधवती अंतर्ध्यान हो गई और
तेईसवीं परी धर्मवती यकायक ठीक नेता जी के सामने प्रकट हुई।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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