आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 24 करुणावती

 


आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 24
करुणावती
करुणावती बोली," हम परियां जानती हैं कि वक़्त बदल चुका है लेकिन यह भी सच है कि वक़्त की तुलना में हमारे कुछ नेता कहीं अधिक तेजी से भ्रष्ट होते गए। आज राजनीति में जहां हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है, वहीं शास्त्री जी बेहद सादगी पसंद और ईमानदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि उनके बेटे अनिल शास्त्री के अनुसार एक बार जब वे शास्त्री जी को मिली सरकारी कार में यहीं दिल्ली में कहीं घूमने चले गए तो यह बात उनके बाबू जी यानी शास्त्री जी को बहुत नागवार गुज़री। उन्होंने ड्राइवर से कहा कि सरकारी नियमों के अनुसार इस निजी यात्रा के लिए जो तयशुदा राशि बनती है, वह उसका बिल बना कर उनके निजी सचिव को बता दे।
तत्पश्चात, उन्होंने श्रीमती ललिता शास्त्री को उस बिल का भुगतान करने के लिए कहा ताकि निजी सचिव उस राशि को सरकारी कोष में जमा करा सके। " फिर कुछ सोचते हुए करुणावती ने पूछा, " नेता जी, क्या यह सच नहीं है कि मंत्री ही नहीं, अधिकांश सरकारी विभागों में तथाकथित ' स्टाफ कारें ' संबंधित विभागों के मुखियाओं द्वारा विभिन्न तरह के निजी कार्यों के लिए खुल्लमखुल्ला इस्तेमाल की जाती हैं ?"
नेता जी बोले, " मुझे अभी इसका तजुर्बा नहीं हुआ है। इस कुर्सी पर बैठने के कुछ महीनों बाद ही मैं यह बता पाऊंगा कि सरकारी कारों का कौन कितना बेजा इस्तेमाल कर रहा है। " यह जवाब सुनकर करुणावती ' ठीक है ' कहते हुए अदृश्य हो गई और नेता जी अपने जवाब पर अपनी पीठ थपथपाते हुए पच्चीसवीं परी की प्रतीक्षा करने लगे।

- सुभाष चंद्र लखेड़ा

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