आधुनिक सिंहासन बत्तीसी
: भाग - 25
त्रिनेत्री
नेता जी के सामने यकायक पच्चीसवीं परी प्रकट होते हुए
बोली, " नेता जी, मेरा नाम त्रिनेत्री है और मैंने शास्त्री जी के जीवन को आजादी
के आंदोलन के दौरान बहुत निकट से देखा है। इस वक़्त मुझे उनके जीवन का एक महत्त्वपूर्ण
प्रसंग याद आ रहा है। मई 1928 में जब वे वाराणसी पहुंचे तो उनकी माँ ने बताया कि उन्होंने
उनका विवाह तय कर लिया है। उनका कहना था कि बेहतर होता कि रिश्ता पक्का करने से पहले
माँ उनकी राय जान लेती।
बहरहाल, माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए वे उनके द्वारा
तय किये हुए रिश्ते के लिए राजी हो गए और फिर 16 मई 1928 के दिन ललिता जी के साथ वे
विवाह के पवित्र सूत्र में बंध गए। उनका विवाह समारोह सादगी से संपन्न हुआ। उपहार स्वरुप
उन्होंने कन्या पक्ष से सिर्फ सूत कातने वाला एक चरखा और कुछ गज खादी का कपड़ा ग्रहण
किया। " कुछ सोचते हुए त्रिनेत्री ने नेता जी से सवाल किया," जब हमारे नेता
विवाह समारोहों में करोड़ों रूपया खर्च करते हैं तो ऐसा लगता है कि उन्होंने शास्त्री
जी जैसे सादगी पसंद नेताओं से कुछ भी नहीं सीखा। क्या आप ऐसे फ़ूहड़ प्रदर्शनों को पसंद
करते हैं? "
नेता जी बोले, " बात फिर वही लोगों पर आ जाती
है। आम लोग ऐसी शादियों की जमकर तारीफ़ करते हैं जिनमें करोड़ों रूपया खर्च किया जाता
है। हमारा मीडिया भी ऐसी जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर गौरव अनुभव करता है।
" त्रिनेत्री बोली, " तो आप जनता की सोच बदलने के लिए कुछ कीजिए। "
नेता जी ने ज्यों ही जवाब में कुछ कहना चाहा, तब तक त्रिनेत्री अंतर्ध्यान हो चुकी
थी।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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