आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 26 मृगनयनी

 


आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 26
मृगनयनी

नेता जी जानते थे कि छब्बीसवीं परी आने वाली है। उन्हें इस बात की खुशी थी कि उनके देश के एक नेता का सम्मान परियां तक करती हैं। तभी वे जिस छब्बीसवीं परी की प्रतीक्षा कर रहे थे, वह प्रकट होकर बोली," नेता जी, मैं मृगनयनी हूँ और मैं चाहती हूँ कि आपका नाम भी श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की तरह अमर रहे। इसके लिए जरूरी है कि आप उनके विचारों पर मनन करें। आप तो जानते हैं कि भारत एक बहुभाषी - बहुधर्मी देश है और इसकी विविधता ही इसकी ताकत है। कई लोग कई वजहों का हवाला देकर राजनीति और धर्म का घालमेल करना चाहते हैं। शास्त्री जी इस घालमेल के खिलाफ थे। इस मुद्दे पर अपने राय को स्पष्ट करते हुए उन्होंने एक बार कहा था, " यदि मैं एक तानाशाह होता तो धर्म और राष्ट्र अलग-अलग होते। मैं अपने धर्म के लिए जान तक दे दूंगा लेकिन यह मेरा निजी मामला है। राज्य का इससे कुछ लेना देना नहीं है। राष्ट्र लोक कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, रक्षा, विदेशी संबंधों, मुद्रा इत्यादि का ध्यान रखेगा ,लेकिन मेरे या आपके धर्म का नहीं क्योंकि यह सबका निजी मामला है। हमारी ताकत और स्थिरता के लिए हमारे सामने जो ज़रूरी काम हैं, उनमे लोगों में एकता और एकजुटता स्थापित करने से बढ़ कर कोई काम नहीं है।"
मृगनयनी ने अपनी बात कहकर नेता जी की तरफ देखा तो नेता जी बोले, " चुनाव के दौरान इस देश में बहुत सी बातें उठाई जाती हैं किन्तु इस देश की स्थिरता के लिए सभी धर्मों के प्रति ' समभाव ' जरूरी है। मैं खुद शास्त्री जी की विचारों से सहमत हूँ।" नेता जी की बात सुनकर मृगनयनी मुस्कराते हुए अंतर्ध्यान हो गई। नेता जी ने अपने वाकपटुता के लिए अपने को मन ही मन शाबाशी दी और फिर वे सत्ताईसवीं परी के बारे में सोचने लगे।

- सुभाष चंद्र लखेड़ा


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