आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 28
वैदेही
परी की प्रतीक्षा करते हुए नेता जी को अभी हलकी सी झपकी आई थी कि तभी उन्हें सुनाई पड़ा," मैं अठाईसवीं परी वैदेही हूँ।" नेता जी ने आँखें मलते हुए सामने खड़ी परी को देखते हुए कहा, " मैं तो आपकी प्रतीक्षा कर रहा था कि आप भी शास्त्री जी के बारे मेरी जानकारी में कुछ इजाफ़ा करेंगी। " यह सुनकर वैदेही बोली, " बात सुनाने का लाभ तभी है जब श्रोता उस बात से कुछ शिक्षा ग्रहण करे। खैर, मैं आज पवन चौधरी एवं उनके पुत्र अनिल शास्त्री द्वारा लिखी पुस्तक ' लाल बहादुर शास्त्री : लेसन्स इन लीडरशिप ' में लिखी एक घटना का जिक्र करना चाहती हूँ।
श्री अनिल शास्त्री के अनुसार ' जब शास्त्रीजी गृहमंत्री थे, उस दौरान उनके बेटे नई दिल्ली में सेंट कोलंबिया स्कूल में पढते थे। एक दिन बेटों ने अपने पिता से शिकायत की कि सरकारी अधिकारियों के बच्चे कार से आते हैं जबकि वे तांगे से स्कूल जाते हैं। शास्त्रीजी ने उनसे कहा कि कार से स्कूल पहुंचाने की सुविधा उन्हें तब तक ही मिल सकेगी जब तक वह गृहमंत्री रहेंगे और बाद के दिनों में फिर से तांगा पर जाने में उन्हें बुरा लगेगा। बच्चों को अपने पिता के सिद्धांत का अहसास हुआ और उन्होंने तांगा से ही जाने का निर्णय किया।' अनिल जी का यह भी कहना है कि शास्त्री जी क्या सोचते हैं, यह जानना बहुत कठिन था, क्योंकि वे कभी भी अनावश्यक मुंह नहीं खोलते थे। खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में उन्हें जो आनंद मिलता था, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।"
अपनी बात समाप्त कर वैदेही ने नेता जी से पूछा, " क्या हम परियां आप से ऐसे जीवन की अपेक्षा रख सकते हैं ?" नेता जी बोले, " पहले मैं आप सभी परियों की बात सुन लूं; मुझे तो आज तक शास्त्री जी के बारे में ये सब पता ही नहीं था। " वैदेही बोली, " ठीक है। " और फिर इधर वह अंतर्ध्यान हुई और उधर उन्तीसवीं परी मानवती नेता जी के सम्मुख आ खड़ी हुई।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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