आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग 29
मानवती
मानवती जी नेता जी का अभिवादन करते हुए बोली,
" जीवन में छोटी सी छोटी बात का भी महत्त्व होता है। शास्त्री जी सदैव इस बात
का ध्यान रखते थे। उनके बेटे श्री अनिल शास्त्री के अनुसार उन्हें और उनके भाई - बहनों
को अपने पिता जी से स्वालंबन, आत्म सम्मान और बहादुरी की शिक्षा मिली। श्री अनिल शास्त्री
के अनुसार ' वह बहुत ही सहज और हर छोटी बड़ी बात का ध्यान रखने वाले पिता थे। उन्होंने
हमेशा मुझे और मेरे भाई को स्वालंबन, आत्म सम्मान और बहादुरी की शिक्षा दी। बचपन में
हम अपने जूतों पर पॉलिश स्वयं करते थे। ' उन्होंने बताया कि शास्त्रीजी ने कभी उनकी
पिटाई नहीं की। यदि वह किसी बात को लेकर नाराज होते थे तो बात करना बंद कर देते थे
और यह हमारे लिए सबसे बड़ा पाठ होता था। हम लोग अपनी तरफ उनका ध्यान आकर्षित करने की
कोशिश करते थे। उन्होंने लिखा है कि एक बार शास्त्री जी ने उनसे कहा कि ' मैंने देखा
है कि जब तुम बड़ों के पैर छूते हो तो तुम्हारे हाथ पैरों तक नहीं जाते हैं। यदि किसी
के पैर छूने है तो पूरे सम्मान से छुओ वरना कोई जबरदस्ती नहीं है। उनकी इस बात का मुझ
पर इतना गहरा असर हुआ कि आज भी किसी बुजुर्ग को प्रणाम करते हुए हम उनके पैरों को जरूर
छूते हैं।' दरअसल, शास्त्री जी को जीवन में किसी भी तरह का बनावटीपन पसंद नहीं था।
वे आज के नेताओं की तरह महज चुनाव जीतने के लिए किसी पाखंड का सहारा नहीं लेते थे।
"
अपनी बात समाप्त कर जब परी ने नेता जी की प्रतिक्रिया
जाननी चाहिए तो वे बोले, " समय बदल गया है। आज के अधिकांश मतदाता खुद पाखंडी हैं
और वे पसंद भी उन्हीं लोगों को करते हैं जो इस कला में माहिर होते हैं। फिर भी आपकी
बातें सुनकर मुझे लगता है कि कहीं तो कुछ गलत हो रहा है। " मानवती बोली,"
आप लोग चाहेंगे तो गलतियां सुधारी जा सकती हैं। " इतना कहने के बाद मानवती अंतर्ध्यान
हो गई और नेता जी जम्हाई लेते हुए तीसवीं परी की प्रतीक्षा करने लगे।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
उत्तराखंड की लगूली
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