आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 30 जयलक्ष्मी..Modern Throne Battisi Story Part 30

 


आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 30
जयलक्ष्मी


इधर नेता जी की जम्हाई ख़त्म हुई और उधर तीसवीं परी जयलक्ष्मी प्रकट हुई। नेता जी ने दोनों हाथ जोड़कर परी का अभिवादन किया। जयलक्ष्मी बोली, " यह प्रसंग उन दिनों का है जब वे आजादी की लड़ाई के दौरान जेल में थे। उन्हें सूचना मिली कि उनकी बेटी बहुत बीमार है। उन्होंने जेल प्रशासन से पंद्रह दिनों का कारावकाश देने का आग्रह किया। दुर्भाग्य से जब तक वे घर पहुंचे, उनकी बिटिया की मौत हो चुकी थी। मृत बिटिया के अंतिम संस्कार को संपन्न करने के बाद वे चौथे दिन जेल वापस आ गए जबकि वे चाहते तो अभी अपने घर और बारह दिन रह सकते थे।
जब ब्रिटिश अधिकारियों की नज़र में यह बात आई तो वे शास्त्री जी के सिद्धांतों आगे खुद को बौना महसूस करने लगे क्योंकि उनको छुट्टी देते समय उन्होंने कई तरह की अड़चनें खड़ी की थी। इन्हीं दिनों से जुड़ी एक दूसरी घटना भी है। एक बार ललिता जी ने किसी के हाथ उनके लिए जेल में आम भिजवाए। शास्त्री जी को यह बहुत अधिक नागवार गुजरा। उन्होंने हिदायत दी कि वे भविष्य में कोई ऐसी वस्तु जेल में न भेजें जिससे जेल की आचार संहिता का उल्लंघन होता हो। "
जैसे ही परी ने अपनी बात समाप्त की, नेता जी बोले, " मैं तो कभी जेल गया नहीं लेकिन सुना है आजकल जेलों में ही सब कुछ मिल जाता है बशर्ते आपकी जेब भारी हो या आपकी पहुँच हो। " जयलक्ष्मी बोली, " मुझे खुशी है कि आप जेलों के भ्रष्टाचार के बारे में जानते हो। " यह कहकर वह अंतर्ध्यान हो गई और उसके जाते ही नेता जी के सामने इकतीसवीं परी कौशल्या प्रकट होते हुए बोली , " अब मैं आपको वह प्रसंग सुनाऊंगी जिसने बचपन में ही शास्त्री जी को एक समझदार इंसान में तब्दील कर दिया था। "


- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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