आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 31
कौशल्या
कौशल्या परी बोली, " मनुष्य को जो शिक्षा दर्जनों
पुस्तकों के अध्ययन से नहीं मिल पाती है, कई बार किसी साधारण के व्यक्ति द्वारा समझाई
हुई बात उसे एक ऐसा पाठ पढ़ा देती है जिससे उसका जीवन संवर जाता है। खैर, आज मैं शास्त्री
जी के बचपन से जुड़ा एक ऐसा ही प्रसंग सुना रही हूँ। हुआ यूं कि अपने बाल्यकाल में एक
बार नन्हे लाल बहादुर अपने साथियों के साथ किसी बगीचे में गए। उनके साथी बगीचे के पेड़ों
पर चढ़कर धमाचौकड़ी मचाने लगे। उस दौरान शास्त्री जी कुछ पौधों पर लगे फूलों को तोड़ने
लगे। इसी बीच उस बगीचे का माली आ गया। माली को देख सभी बच्चे भाग गए लेकिन शास्त्री
जी उसकी गिरफ्त में फंस गए। उसे देख शास्त्री जी बोले कि उसे उन पर दया करनी चाहिए
क्योंकि उनके पिता का स्वर्गवास हो चुका है और वे नहीं चाहते कि उनकी इस हरकत का पता
उनकी माता को चले।
यह सुनकर माली ने उन्हें समझाते हुए कहा कि पिता न
होने के कारण तो उन्हें और भी अधिक समझदारी से चलना चाहिए और कोई गलत काम नहीं करना
चाहिए। माली द्वारा कही बातों को उस दिन शास्त्री जी ने अपने मन में उतार लिया और तत्पश्चात
उन्होंने जीवन भर कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे नैतिकता का उल्लंघन होता हो। "
परी की बात सुनकर नेता जी बोले, " काश, मुझे भी
कभी कोई ऐसा समझदार माली मिला होता ! " यह सुनकर कौशल्या परी " जब आँख खुले,
तभी सवेरा " बोलते हुए अंतर्ध्यान हो गई और इधर नेता जी उस बत्तीसवीं परी रानी
की इन्तजार करने लगे जिसके बाद उनका सवेरा होने वाला था।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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