सुंदर धरा ...सुमन डोभाल काला

 

सुंदर धरा ...

रहने लायक दी थी मैने सबको ,

पर तुम लोगों ने कहीं का न छोड़ा ,,

जगह जगह तोड़ मोड़ कर ,

मेरे को कर दिया अधमरा ,,

पहाड़ों को खाक कर दिया ,

ज़मी को बना दिया नरक ,,

प्रकृति से खिलवाड़ करोगे ,

अंजाम भी तुम ही भुगतोगे ,,

चादर ओढ़ पेड़ों की मैने ,

कंक्रीट से सजा दिया मुझे ,,

नदियों का भी रोका रास्ता,

क्या करे अलमस्त बहे वो 

शहरों कस्बों और गांवो में

अब वो ..

कचरा से पाट दिया है ,

अब तो जीना मेरा भी मुश्किल 

हो रहा इस प्लास्टिक , धुएं ,

और  गंदगी से ,,

कैसे उबरू कैसे पार लगूं मैं ,

करे कोई और भरे कोई ,,

अभी न चेते तो होंगे परिणाम 

भयंकर ,,

फिर से कर दो वही मुझे तुम ,

सुख से जियो और जीने दो तुम ,,

सबका सपना सुंदर धरा हो ,

और हवा पानी हो ताज़ी ताज़ी,,

आओ कर दो फिर से वही धरा तुम,,

        स्वरचित कविता...

  सुंदर धरा ...

सुमन डोभाल काला

देहरादून उत्तराखंड...

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