कैकु म्वार रै ?
------*****------ ( व्यंग मात्र )
बात हमरा बचपन का दिनों की च । हम थैं सिखये जान्दु छाई कि गाळि नि देणी चयेन्द कै थैं । फेर बि हम प्यार पिरेम मा खूब गाळि खाँदा छाई ।ई बात थैं समझाणु खुणैं माँ ब्वादि छै त्यार समझम त नि आँण तेरी बुद्धि त खड्वळा घरींच ।
फेर जनि जनि बडा हो हम ख्यलणू गयाँ रैदा छाई त घार बटि धै लगदि छै । आ ल्यावा रै घार स्यखि जुगा हूँण तुमुन ? स्यखि भ्वरण तुमरि ख ड्वळि ?
जब घार पौछदा छाई त त घार वळा ब्वल्दा छाई ।कख धर्यू छाई तु सर्या दिन ?
जब क्वी गौडी भैंसी घार नि आंदि बगत फरि त वैकु गुसैंण हरिबि कळचवणि तौलु धरदि छै अर ब्वादि छै ! कख ग्या ह्वैलि बाघा पुटुग ? कख लगीं ह्वैलि तड़म ?
जब हम खाणु बगत घार आंदा छाई त ददि ब्वादि छै । ल्यावो किसाणि कै कि अयाँ छौ धारो स्यूं पुट्ग्यूं मा जाडि , खच्वारों अपणाँ पुटगों थैं ।
जब हम माछा मनौ जाँदा छाई त बसग्याळ रति लगुला लगै कन आँदा छाई अर सुबेर लेकन दिखणूं जाँदा छाई । उख बि बात की सुरुवात गाळि बटि होंदि छै । कैक म्वार रै ? बडु म्वार कि छुटु - ? ईं बात थैं झंणि कतगा लोग कतगा लोग ब्वादा छाई असल मा ऊ माछौं का बान ब्वल्दा छाई कि कैन मार ? कैक म्वार ? बडु म्वार कि छुट्टु म्वार ?
ई गाळि नि छन हमरि सामान्य बोल चाल क एक हिस्सा छन । याँका बगैर आपसी प्रेम नि छलकुदु । ई एक दुसरो पर अपणु अधिकार अपणु पन जतांणु एक तरीका छाई । हमरि बोलि भाषा की मिठास थैं ई शब्द बढ़ान्दा छाई ।
यूँ शब्दों मा इतगा अपणूं पन च कि क्वी अपणूं ब्वाल त प्रेम च अर क्वी भैरवळु बोलि द्या त मार काट बि ह्वै जा ।
पर जो बि च ई पैली ब्वादा छाई जब ठेठ गढ़वळि छै । आज त भाषा बि बनावटी च हुई । कठमुळ्या सुद्दी । अब त गढ़वळि ब्वलेणी ल्यखेणी इन च जन गिल्ली रेत मा रिखड़ा मरणा ' घाम आई रेत सुखि अर रिखडा लापता ।
संदीप गढ़वाली ।
उत्तराखंड की लगूली
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