फूलों की सुगंध***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt

फूलों की सुगंध

फूलों की सुगंध
झरनों के संगीत
 सखियों के साथ
वन मैं 
 मृगछौनों  का उधम
  कुहेडी की लुक छुप
छोटी छोटी वन नदियां
बांज और बुरांस के लकदक वन
 घसियारियों के खुदेड गीत
परदेशी की याद
 आज भी मेरा हृदय वहीं है
अपने गांव के सावन मैं
मैं नहीं भूली
वो धरती का रमणीय रूप
मेरी स्मृतियां आज भी वैसी हैं
कब भूली मैं
बाबा का आंगन
मां की बातें जो
इतिहास और भूगोल 
बरस रहा यादों का सावन
बरसों बाद
क्रूर काल ने रोंद रखा
पैरों तले अधरों का मधुहास
 प्रेम से गर विलग हों
प्रेमी सब कुछ खोते हैं
जैसे अनगिनत नदियां
खारे सागर मैं जा कर
खारी हो जाती हैं
मैं इस दुनियां को छोड
चांद पर जाऊंगी
आंचल से ढक लूंगी उसको
और तारों से बातें हजार करूंगी
शायद वो भी दिल रखते हों
जो इंसानों की इस
बेगानी दुनियां से
 अनजान हों
बस मुझे अपने हिस्से का
प्यार चाहिए
और रात गुजारने को
एक छत चाहिए
जिसमैं न चार दीवारें हों
न देहरी न कमरा हो
और खुश रहने का नाटक
 न करना पडता हो

दमयंती

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आभार 
दमयंती
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