फैशन में मरे जा रहे हैं ...स्वरचित- सुरेश कुकरेती

 फैशन में मरे जा रहे हैं 



सब के सब तो फैशन में मरे जा रहे हैं |

दोष सिर एक दूसरे के मढ़े जा रहे हैं  ||


साड़ी सिंदूर सूट सुहाग चिह्न नदारद |

पाश्चात्य संस्कृति में लिपटे जा रहे हैं ||


चूड़ी बिंदिया बिछुआ पैजनियां छूटी |

धागा काला पांवों में लपेटे जा रहे हैं ||


तिलक जनेऊ धोती कुर्ता चुटिया गुम|

ब्याह बरातों में बरमुडे पहने जा रहे हैं||


खान पान बाज़ारू चूल्हा चौका सूना |

पिज्जा बर्गर मोमोज पेट भरे जा रहे हैं ||


संस्कृति सभ्यता संस्कार सब समाप्त |

टाटा बाय बाय हाय हैलो कहे जा रहे हैं ||


प्रथा परम्परा नाते रिश्ते सब हुए हवा |

मॉम-डैड सिस मिस ब्रो कहे जा रहे हैं ||


श्रद्धा भक्ति दया दान धर्म कर्म दिखावा |

हाथों में लड्डू गोपाल ले फिरे जा रहे हैं ||


सर्वोच्च रहे तिरंगा अपना मर मिटे बलिदानी |

उसी तिरंगे ऊपर धर्म ध्वज लगाये जा रहे हैं ||


धर्म सनातनी गौरव भारत का लुप्त हुआ है|

हम त्याग रहे संस्कृति गोरे अपनाये जा रहे हैं||


स्वरचित

सुरेश कुकरेती 

मेरठ ( उत्तर प्रदेश)

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