गज़ल
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एक लछमी
उन त यख हर घरमा एक लछमी रैंद ।
तैभि हर घरमा क्वी न क्वी कमी रैंद ।।
हैंसदि मुखड़ि खिकताट करदा रदिंन ।
तुमारि आंख्यूंम कुछ न कुछ नमी रैंद ।।
कख हर्च वा स्यवा-सौंळि राजि-खुसि ।
रिस्ता-नातौं फरै भि सिंवळि जमी रैंद ।।
उलखणि सुभौ का उपिरि लोग यखम ।
जौंकि आंदि-जांदि हवा-बथौं थमी रैंद ।।
चुला मा हड़ैईं चूना की रोटी जन लोग ।
जख कखिम बटैकि जिकुड़ि डमी रैंद ।।
आंख्यूं की चळ्का-बळ्कौं मा डैर न भौ ।
जिकुड़ि चोरि करदिन जब दिनघमी रैंद ।।
तुमरा गात पर लारा सुखिला दिखेंणा ।
अरे सौंण भादौ मा रुजणु लाजमी रैंद ।।
टुटीं-फुटीं सि द्याख 'पयाश' की कलम ।
गीत भि घैल चा गज़ल भि जखमी रैंद ।।
©® पयाश पोखड़ा
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