गज़ल ***** एक लछमी उन त यख हर घरमा एक लछमी रैंद ©® पयाश पोखड़ा

 


गज़ल

*****

एक लछमी


उन त यख हर घरमा एक लछमी रैंद ।

तैभि हर घरमा क्वी न क्वी कमी रैंद ।।


हैंसदि मुखड़ि खिकताट करदा रदिंन ।

तुमारि आंख्यूंम कुछ न कुछ नमी रैंद ।।


कख हर्च वा स्यवा-सौंळि राजि-खुसि ।

रिस्ता-नातौं फरै भि सिंवळि जमी रैंद ।।


उलखणि सुभौ का उपिरि लोग यखम ।

जौंकि आंदि-जांदि हवा-बथौं थमी रैंद ।।


चुला मा हड़ैईं चूना की रोटी जन लोग ।

जख कखिम बटैकि जिकुड़ि डमी रैंद ।।


आंख्यूं की चळ्का-बळ्कौं मा डैर न भौ ।

जिकुड़ि चोरि करदिन जब दिनघमी रैंद ।। 


तुमरा गात पर लारा सुखिला दिखेंणा ।

अरे सौंण भादौ मा रुजणु लाजमी रैंद ।।


टुटीं-फुटीं सि द्याख 'पयाश' की कलम ।

गीत भि घैल चा गज़ल भि जखमी रैंद ।।


©® पयाश पोखड़ा

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