नित्य****** Hindi Poetry wrote by Bhagwati Juyal

 नित्य

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आसमान उडण वलौं धर्मै सुणा यीं  देसना

पृथै  लालसा  रै  जंदिन शमसानै  राख मा 


अन्न  धन्न  घौर  गृहस्तै  संपदा मिल्यूं  थान

मनखी टौल पैं  रौंण कुदरतौ देयूं ज्यू  जान


कुदरतै मार अंगलती कुदरत तैं  ले पछाण

छेड छाड़ै कोशिस कै  मिटै  देंदी अभिमान


मनखी चोला  पाई  कुदरतौ  अहसान  मान

लंत  लोभौ  हुर्षू  कै  कै  बणी  जांदी शैतान


माँ  समान माटी  जाण  किलै  लगौंदी  डाम

जड़ जंगल जल घणा बुग्याल पृथै  की शान


माटै काया इक दिन चुचा माटम मिली जाण

कथगा उड़ली थकी हारी तिन माटम समौंण


छोड़  लंत  लोभ का  प्रपंच्चू  माया  जंजाल 

मुंडा ऐंच रिंगणू रेंद करमगत्यू हरसमै  काल


आसमान  मा  उड़ण वलौं  नि कनू अभिमान

काया प्रपंच्च जाणील्या कुदरतौ करा समान।।


रचनाकार :- 

CR  

भगवती जुयाल गढदेशी 

 *समलौंण*


उत्तराखंड की लगूली

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