आणू जाणू
इक दिन आणू दुनि मा ऐक दिन जाण
सात दिनौ च जीणू श्री हरी की बोल्याण
मनु सतरूपा न बसै सृष्टी भोले कु संसार
ब्रमा जी तैं सृष्टि रचाणू जौन दे यु बिचार
जलाकार छै पृथा ना कखी नामोनिशान
पाताल लीगी हिरण्याक्क्ष तोड़ी अभिमान
ब्रहमा जी बिष्णू जी मु गैनी कैरी अरदास
भोले भंडारी इच्छा प्रभू कनकै पुरेली आश
मुंथा पालन हारा देव साक्षात दया छीं भंडार
बाराह अवतार ले कि कै हिरण्याक्षौ उद्धार
पृथा छुड़ै लैनी प्रभू देवतौं न कै जै जै जैकार
पृथा का रचियता ब्रहमा विष्णु पालन हार
शिव भोले भंडारी औघड़ी देवों का महादेव
निर्विकार निराकार निर्गुणी सती का महादेव।।
क्रमशः : -
रचनाकार :- CR भगवती जुयाल गढदेशी
*समलौंण*
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