गज़ल
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सुदि सुदि
सुदि सुदि अटकणु भटकणु रैंद ।
आंख्यूं मा खैड़ सि खटकणु रैंद ।।
जब बटैकि ग्याइ वो गौं छोड़िक ।
देळि-देळि्यूं मा मुंड पटकणु रैंद ।।
परदेसमा बड़ी सि कोठी च वैकि ।
पर सदनि बल ताळु लटकणु रैंद ।।
डैरि डैरिक ढुंग्यांद वो कूड़ियूं थैं ।
अजकाल कांच जन चटकणु रैंद ।।
दिनमान घर बटै भैर नि जांदु पर ।
रात-राति झणि कनै सटकणु रैंद ।।
ह्वै ग्याइ खतम वैकु दाणा-पाणि ।
सुप्पम बुसिला सट्टी फटकणु रैंद ।।
बल दुख दरद बिसरणा का बाना ।
रोजना कच्चि पक्कि घटकणु रैंद ।।
हथ नि मिलाणु वे दगड़ 'पयाश' ।
हथ मिलांदै वो हथ झटकणु रैंद ।।
©® पयाश पोखड़ा .
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