जीवन के सात सुर.....हरि लखेड़ा
सा- मैंने खुद के लिए एक विडंबना हूँ, कई बार अपने आप को ग़लत साबित कर चुका हूँ ।
रे-मुझे पता है कि सच क्या है पर बोलने की हिम्मत नहीं है ।
म-मुझे तनाव मेरे आंतरिक विचारों के कारण होता है किन्ही बाहरी कारणों से नहीं।
प-अगर मैं मान लूँ कि दूसरे लोग अच्छे हैं तो किसी से शिकायत नहीं रहेगी।
धा-भड़काऊ हालात होने पर शांत रहना नंबर एक जीवन कौशल है पर यह समझने में सारी उम्र निकल जाती है।
नी-किसी से कुछ भी उम्मीद नहीं रखने से मेरी ज़िंदगी महक सकती है पर मानूँ तब तो!
स्वरचित सादर
हरि लखेड़ा
उत्तराखंड की लगूली
हिन्दी । गढ़वाली । कुमाउँनी । गजल । अन्य । कवि । कवयित्री । लेख ।
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