प्रभु से अभिलाषा
प्रभु मन संशयों का मेरे,तुम निराकरण कर देना।
घिर जाऊं मोह जंजालों में, प्रभु हरण कर देना।
राह अंधेरी भटक जाऊं,ज्योति किरण जला देना।
उदर खाली हो मेरा जब,भरण पोषण कर देना।
आठों याम लगाऊं ध्यान,प्रभु चरण पकड़ा देना।
तर जाऊं भवसागर पार,जनम मरण मिटा देना।।
महामना गुरु पदचिन्हों, प्रभु अनुसरण करा देना।
भरत सा भ्रातृ तजूं ताज,कुरुक्षेत्र रण न करा देना।
करूं अभिमान अपने पर, मुझे दर्पण दिखा देना।
मिटे जो वतन के वास्ते,पदपुष्प अर्पण करा देना।
धरा मांगे जब लहू मेरा, तन समर्पण करा देना।
चुकाना उपकार माटी है, प्रभु प्रण मेरा जता देना।।
स्वरचित
सुरेश कुकरेती
मेरठ (उत्तर प्रदेश)
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आभार
सुरेश कुकरेती
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