गासी लगीं रै****** Grhwali Poetry wrote by Bhagwati Juyal

 

गासी लगीं रै


उलरया  खित  खित  किलै  छैं  हंसणी

तरस्यूं  शरैल  किलै  छैं  बणाग लगौणी


निहोण्यां  खित  खित  किलै  छैं हंसणी

भूख  प्यास  हरचै  आँख्यू  छैं मटकौणी


मयला पराणी किलै ह्वेली इथा पितौणी

रूपै  खजानी भग्यानी आँख्यूं  दुखौंणी


नि होण्यां खित खित किलै  छैं हंसणी

बाठू  हेरी  गौं  कू  तेरा धकदयांदु पराणी


रगरयाटौ  किलै  रगरयांदु  इथा नि जाणी

उनी  बाली  उमर  तेरी अर  मेरी  बालपनै


दुन्यै  लाज  शरम  डरौंद बदनामी अचमनै

सुख चैन छीनी लठ्याली स्वीणौं दिखेंणी


निहोण्यां  किलै  छैं  घुत घुती  सी लगौंणी

नि होण्यां  खित खित किलै  छैं  तु हंसणी


बांदु मा  की  बांद छैं  मेरी  मयालु  पराणी

गलोडयूं  पिल पिलपिला  स्वाणी  दिखेणी


चौंठी मा कालू तिल जणि क्या  च बिंगौणू

लम्बी धौंपेल्यू  तेरू घुंडा  घुंडौ  तै लौंफेणू


नाक  बिसार सजिली  ज्वन्यां  रूप सजौंणू

निहोण्यां मायाम उलझै उलझै देखी रिझौंणू


छुणक्याली दथूड़ी  हथू  छुण  छुण  बजौंदी

नौ  पटा घाघरी  तेरी  कांडौ  तैं भी  रिझौंदी


पाणी  पंधेरौं  गैल्वाड्यूं  गैल  छुयीं  भट्योंदी

मुंड  मुंडेसा ढलकदी  गागर जाणी छलकौंदी


नि होण्याँ  नि खौत  नि खौत  उलरया जवानी

मना मन्यूला  छीं भेंट  हो  न हो कैन नि जाणी।।


निहोण्या खित खित
रचनाकार
CR  भगवती जुयाल गढदेशी 
 *समलौंण*


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