लाटी ....****** Grhwali Poetry wrote by Bhagwati Juyal

 


लाटी  


लाठी  सीधी  राख लाटी  घस  रौड़ी  जैली 

टेडा ऊबड़ खाबड़ बाठा भेल लमडी जैली।


बसगल्या चिफलण्या माटू फिसलौंण्या बाठू

बुढापा शरैल सौंजड़या अंक्वे कि टेकी लाठू। 


तेरी मेरी जलम भूमी च पुरखौं की या न्यारी

पल्यां बढ्यां पढ्यां लिख्यां छां  यखी प्यारी।


याद कर ऊं दिनू जब मांगण ह्वे छयी तेरी मेरी

जणदा  छा न पछणदा  छा ऐक  हैं का तबारी।


संजोग  रै होलू  बामणन  टिपड़ा जु जुड़ै  द्याई

अजणदौं  तैं दगड़ा बाठू हिटणू  जु  सिखै द्याई।


बोन क्याच अधेड़ ह्वे ग्यां देखदा देखदी हम द्वी

जिम्मेदारी पुरेनी  पितरू आशीष ये  तैं समझी।


हिटी लिधौं मठु मठू  चुची रस्ता आधा कटे ग्याई

रयूं  च थोड़ा सी अब दिलम कतै दंदोल ना काई।


सात  फेरौं  का ऊं सात  बचनू  सणी  याद  काई

जब  तक  ज्यूला  साथ  रौला  भरोसू   तू  काई।


चार  दिनै  जिन्दगी  च  सदन्यू  यख  क्वी नि आई

धोणी तपौणी कथगै कौरा सौभ यखि  छोड़ी ग्याई।


हंसद  खेलद कटि जाऊ जिन्दगी औरी  क्या  चैंद

जीवन कु सार जैन जाणीयाली दगड़ू निभये जांद ।


हिटणु ऐथर हेरणू पैथर कबजोल मा कतै नि जीण

होणी  होतब सौभ भागै  बत यखि मुंथा  मा जीण ।


दिन बौड़ी  कि सभ्वा औंदा  मन  मा दीर्घम भी चैंद

भागा सारा कब तैं जियेलू लौ लकार भी चुची चैंद।।


भगवती जुयाल गढदेशी

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