भग्यनो!.... Poet.. केशव डुबर्याळ "मैती" ... utterakhand Gharwal India

 


भग्यनो!


भग्यनो!
सभि कुछ त,
मनाणा ह्वैला,
तीज त्यौहार,
इगास,बग्वाळ,
ढोल न्युतण से
बामण बिदै तक,
पौणु पुजण से,
बेटी फट्याण तक,
तब कन नि मनाण तुमन,
जब पितृ कूड़ी भितर,
बैठा ग्यौ डुट्याळ,
छैंदी को!
छब्लाट छोड़ि ग्यौ,
निखणी!
बोलि ग्यौ अकाळ,
हूणी खाणी भि,
कख्वै छै दिदा?
जब तुमर तरफे,
सौ न समाळ,
अज्युं भि छैंछ,
एक आस,
आओ,मिली जुली,
बचाओ अपड़ि,
संस्कृति,सभ्यता की जलुड़ी।

केशव डुबर्याळ "मैती"

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