“ गर्व के पल “
यह वाक़या उस दौरान का है जब हमारी बेटी संयोगिता इंजीनियरिंग की मास्टर डिग्री करने के लिए जर्मनी जाने की तैयारी कर रही थी। हमें उसको जर्मनी भेजने के लिए बैंक से कर्ज लेना था।
इस सिलसिले में जब मैं पास के उस सिंडिकेट बैंक की शाखा में गया जहां मेरा खाता था तो बतौर जमानती मेरा मूल्यांकन करने के लिए बैंक अधिकारी ने मेरे से पूछा - “ क्या आपके पास अपना फ्लैट है ?”
मेरे से न सुनकर उन्होंने पूछा - क्या आपके पास कोई वाहन यानी कार आदि है ?
मेरे मुँह से फिर से न सुनकर उन्होंने पूछा कि क्या हमारे पास इतनी ज्वैलरी है जिसका उल्लेख बतौर प्रतिभूति ( Surety ) किया जा सके।
जब मैंने फिर से न कहा तो उन्होंने हँसते हुए कहा - मुझे आप पहले ऐसे राजपत्रित अधिकारी मिले हैं जिसके पास कोई चल - अचल संपति नहीं है।
उनके मुँह से यह सुनकर मुझे कतई बुरा नहीं लगा। मुझे उलटे गर्व हुआ कि इसके बावजूद मेरी बेटी मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग करने के लिए विदेश जा रही है।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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