गज़ल
क्य ब्वना क्या ह्वाई
क्य ब्वना क्या ह्वाई हमथैं तुमर दगड़म ।
कुछ समझ नि आई हमथैं तुमर दगड़म ।।
खड़ाखड़ि छवां हम माया का पंदेरा मा ।
भांडि भ्वरीं दिख्याई हमथै तुमर दगड़म ।।
जिंदगि जग्वाळ करदा-करदा बितै द्याई ।
हौर क्वी नि दिख्याई हमथैं तुमर दगड़म ।।
तुम दगड़ आज सर्या दुन्यां भूलि ग्यौं मि ।
अब क्वी याद नि राइ हमथैं तुमर दगड़म ।।
बरखा दगड़ कुएड़ि ल्यांद खुद लपेटिक ।
भटुळि दुयेक लगाई हमथैं तुमर दगड़म ।।
नजर की सिसाद हम जनै किलै लगीं चा ।
तेरि आंख्यूं न बिंगाई हमथैं तुमर दगड़म ।।
तुम द्यख्यां बगैर बिचैन किलै रैंद 'पयाश' ।
नशा दगड़ नशा ह्वाई हमथैं तुमर दगड़म ।।
©® पयाश पोखड़ा
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