गज़ल
कत्गा रौला-बौला
कत्गा रौला-बौला उनि छप्पत्वळै कि
तैर ग्या वो ।
पर हम खुणै ढुगौं का ठप ठप्पकौण्यां
धैर ग्या वो ॥
जाणिकि अजाण बणिकै वैका काख-
धाड़ बैठु मि ।
द लाटु अपणि जागा छोडि सर्र फुण्डै
सैर ग्या वो ॥
क्युंकळि, किसळि, पराज अर भटुळि
सि लगैकि ।
आंख्यूं-आंख्यूं मा झणि क्य-क्या सानि
कैर ग्या वो ॥
तिसळा पराणा की छम्वट्या तीस
तिसळि रै ग्याइ ।
म्यारा रुफ़ड़ांदा सरैल थैं द्यखदै जणि
डैर ग्या वो ॥
अपणों का समणि गिच्चु उफरणा की
हिकमत नि छे ।
ब्वन-बच्याणा कु कभि भितर त कभि
भैर ग्या वो ॥
दीनद्वफरि का चुड़ापट्टि का घाम मा
ठण्डू छैल सि ।
जांदा-जांदा अचाणचक "पयाश" खुणै
ठैर ग्या वो ॥
©® पयाश पोखड़ा
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