पौ-बारा ह्वेगीं
हलकर्या निंद सुपिन्या आवारा ह्वेगीं ।
शरब्या आंख्यूं दगड़म पौ-बारा ह्वेगीं ।।
नै जमना की हवा फफ्राणी मुलकम ।
दाना सयणा सब छोरि-छ्वारा ह्वेगीं ।।
जुन्याळि राति अर यखुलि यकुलास ।
म्यारा सौंजड़्या भि सरग तारा ह्वेगीं ।।
दरद न पिड़ा जिकुड़िम खुद ना याद ।
पर आंख्यूंम आंसु ल्वै का धारा ह्वेगीं ।।
माया की स्याणि गाणि दुख दे जदिन ।
झणि कतगा सुपिना माटा गारा ह्वेगीं ।।
आंख्यूंम बटै एक आंसू भैर क्य आई ।
धारा मंगरा सब खारा का खारा ह्वेगीं ।।
बौळ्या सि खौळ्यां छन कैका प्यारम ।
वो दुन्या मा जयां बित्या बिचारा ह्वेगीं ।।
जिकुड़ि निखोलिक कल्यजि चीरी दे ।
'पयाश' पियार का बीज दुबारा ह्वेगीं ।।
©® पयाश पोखड़ा
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