"बचपन" Gharwali Poetry By Sudama Dobriyal

 

"बचपन"

क्या छै दिन वो बचपन मा
जब याद आंदि पचपन मा।।
मी पहुंची जांदू बचपन मा
स्वचूदू छौं मन ही मन मा।।
पाटी,कलम,बुलक्या,का दिन
कमैटा कू लिख्यूं एक द्वि तीन।।
लत्ता कपड़ा कट्यां फट्यां
स्कूल नी गाई प्वथ्या क बिन।।
हाफ टैम छुट्टी हूंदी छाइ
वीं घंटी कू टन टन टन मा।।
मी पहुंची जांदू बचपन मा
स्वचूदू छौं मन ही मन मा।।
वो गिनतीं पहाड़ा बराखडी
लिखाई हाथ पकड़ पकड़ी।।
मार भी खूब प्वडदी छै तब
दीदी रैंदीं छाई जो बड़ी।।
याद भी झट हूंद छाईं
थप्पड़ की चट्टम रटन मा।।
मी पहुंची जांदू बचपन मा
स्वचूदू छौं मन ही मन मा।।
नाक भी उनी चूंदू छाई
मार खाकि मी रुंदू छाई।।
कुछ ही पल मा हंसण खेलण
फिर भी ग़म नी हूंदू छाई।।
कुर्ता पहन्यूं रैंदू छाई
उल्टू सीधू का बटन मा।।
मी पहुंची जांदू बचपन मा
स्वचूदू छौं मन ही मन मा।।
क्या छै दिन वो बचपन मा
जब याद आंदि पचपन मा।।
मी डोबरियाल "असीमित""
©®

सुदामा डोबरियाल

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