बिचारू Gharwali Poetry Written By Sandeep Garhwali

 

बिचारू

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मैंमा त छतरी च,
बरखा मा नि रुझुदु मी ।।
पर कन ह्वालु बिचरू !
बरखा मा रुझुणूँ,
जैकु नि लंदरू क्वी ?
कखि ऐंसु भी चुनौ मा
सिर्फ मुद्दा त नि रालु वी ?
मैमा च छैल ,
म्यारा ब्वे बाबू कू!
उ कनक्वे रालु बिचरु ,
जैक नि डाळि क्वी. ?
कखि ऐंसु भी चुनौ मा
सिर्फ मुद्दा त नि रालु वी ?

घाम बरखा म मी ,
भितर चलि जाँन्दू !!
उ कख जालु बिचरू ,
जैकु नी घार क्वी ?
कखि ऐंसु भी चुनौ मा
सिर्फ मुद्दा त नि रालु वी ?

गरीब गरीब बोलिकी ,
कतकै नेता बणिगैं न !
वे निर्भेगीआंखों का ,
आँसू भी पोछलु क्वी ?
कखि ऐंसु भी चुनौ मा
सिर्फ मुद्दा त नि रालु वी ?

ह्वालु क्या कभी यन जु ,
वैकि खैरि सूणलू क्वी ?
सच मा वै गरीब की
गरीबी मिटालु क्वी ?
कखि ऐंसु भी चुनौ मा
सिर्फ मुद्दा त नि रालु वी ?

सन्दीप गढवाली ©®

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