अकल दाड़ - Gharwali Poetry By Bhagwati Juyal Gaddeshi

 


अकल दाड़


समै चल दगड़या ठंडू मठू कै की चल
अध बठा मा छौं घड़ेक जग्वलदी चल

होली अबेर देख अबेर निगोड़ी होण दे
सस्योंण दे सांस दगड़या सांस लेण दे

उकाल्यू बाठू टेक्वा ना लाठू हेरदी जै
दानु शरैल घुंडा पिड़ांदा दानेष्ठी देखी जै

समौ दगड़ा भलू निभै दगड़या रगरै ना
अनित्य ये चोला सारू देण बिसरी ना

अवगुणू फंच्चू यु पिंजरा तुत जणदी छैं
तेरा हथुम भागै लकीर ठंडू मठू खींचदी जै

चार ऐक दिन जीणौ ज्यू बोनू मानी जा
जाणू अटल जणदू छौं घड़ेक रूकी जा

मि पता च तेरी भी रफड़ा तफड़ी कुदरती
रूकण थकण नी बीतदु जाण च नीयती

मन का दंदोल छीं दगड़या लाणू छौं त्वेमा
ज्वानी मा चितै नी अकल दाड़ बुढापा मा।।

©® भगवती जुयाल गढदेशी
उत्तराखंड की लगूली

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