रोजगार कखन ल्याण!!- Gharwali Poetry By Mahendra Bhandari "Albela"


रोजगार कखन ल्याण!!


जगरी ,बामण दारु खुज्याणा छीं ,
द्यो - द्यबता सारु खुज्याणा छीं ।
भूत ,बळैई जगरियों तें खिजाणा छीं ,
छी बै अच्ग्य्याल यो क्न्न छिलु बुज्याणा छीं ।?।
दाना दिवना अपणूतैं भट्याणा छीं ,
खंद्वार कूड़ी बांजा पुंगडियों मां बांदर हकाणा छीं ।
अपणि पिड़ा कैमा दिखाणा ,
त कैमा लुकाणा छीं ।।
साग भुजि सुंगर ,सौला खाणा छीं ,
ककडी -मुंगरी गूणी - बांदर ली जाणा छीं ।
स्याल बि अब त यख ,
बन्नी -२ का राग गाणा छीं ।।
जो द्वि चार पुंगड़ियों क्वी बुतणा बाणा बि छीं ,
वूं मा बि सौळा सूंगर खड्यरा कै जाणा छीं ।
क्य कन्न दिनभरिकि हाक -डाक कैरिकि
यो त रात्यौंखुणि सत्यानाश कै जाणा छीं ।।
अब त हाल बुरा छन दगड्यॊं यख ,
सब कुछ बजारा कु खाणा छीं ।
कुछ त कन्ना निछन ,
अर कुछ हूणू बि नीच ,
त कुछ रैणू बि नीच ,
इलैकि सब्बि धाणी ,
दुकनि बटि ल्याणा छीं ।।
फिर बि लोग एक ही राग गाणा छीं ,
बळ प्रवासियों तैं अड़ाणा छीं ।
रैबासियों तैं समझाणा छीं ।
पलायन बचावा ,
घौर ऐ जावा
घौर मि रावा
यखी अपणू काम धंधा जमावा
यखी कमावा,यखी खावा
पर यन्न क्वी नि बथाणू कि कन्नु,करि रैण,
क्य कन्न ,क्य कमाण।
अर रोजगार कखन ल्याण।।

©® महेंन्द्र भंडारी " अलबेला

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